बुधवार, 14 जुलाई 2010

Hameed "KHIZR" Shahjahanpuri


खुशिओं  से कब रिश्ता है,
मुझको गम ने पाला है.

फिर एक तारा टुटा है,
क्या कुछ होने वाला है.

गैरों ने ही साथ दिया,
 अपनों ने जब लूटा है.

अब क्यों तुम अफसुर्दा हो,
जो बोया वो काटा है.

दिल के एक एक पन्ने पर ,
नाम ये कैसा लिखा है  .

 ढून्ढ "खिज़र"अब साथी  भी ,
कब से अकेला फिरता है.

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