थके उबे तिरस्कृत पल भी ,
चुरा लाते हैं ,
तुम्हारी फेनिल हंसी ,
गंधित मुस्कान ,
और
उत्सवी पहचान ,
बहुत चुपके ।
वोह पहचान
दुबक जाती है
कहीं मेरे में
मेरे जड़ को
चेतन करने
मेरे अधिगमन को
अध्यात्म बनाने
.................क्रिशनआधार मिस्र
चुरा लाते हैं ,
तुम्हारी फेनिल हंसी ,
गंधित मुस्कान ,
और
उत्सवी पहचान ,
बहुत चुपके ।
वोह पहचान
दुबक जाती है
कहीं मेरे में
मेरे जड़ को
चेतन करने
मेरे अधिगमन को
अध्यात्म बनाने
.................क्रिशनआधार मिस्र
यह किस जुर्म की अब सज़ा दी गई ,
जवाब देंहटाएंकी शाखे -नशेमन जला दी गई.
जहां के मकीं हद से आगे बढे ,
वोह बस्ती ही एक दिन मिटा दी गई.
जो तस्वीर आँखों मैं रखने को थी
वोह बाज़ार मैं क्यों सजा दी गई.
मसीहाई का जिस ने दावा किया ,
तो ज़ख्मों की उसको क़बा दी गई.
अज़ल से जो वजहे-ताल्लुक रही ,
वही बात "अख्तर" भुला दी गई.