इस जनपद का हिंदी साहित्य मैं भी योगदान रहा है . यह केवल शहीद नगरी ही नहीं है. हमारा यह प्रयत्न हो गा की जनपद शाहजहांपुर के इस योगदान को उजागर करैं.
सोमवार, 27 सितंबर 2010
फर्जी नेताओं के नाम
मैं जगा जगा कर हार गया हूँ नेताओं ,
अब कौन नया स्वर जाग्रति का देना हो गा ?
अब तुम्हें जगाने के खातिर शायद मुझको ,
दुनिया मैं फिर से नया जन्म लेना हो गा .
हम कवी -चरण चेतना दूत हैं वाणी के,
जिनके स्वर ने दी है पत्थर को बोली .
पर हार गए बीसवीं सदी मैं हम आकर ,
जो दे न सके इस मोटे खद्दर को बोली.
भारत का आँगन है लपटों से घिरा हुआ ,
पर तुम्हें आंच का रत्ती भर अहसास नहीं ,
अपने गौरव-इतिहास और छमताओं पर,
लगता है तुमको तनिक रहा विश्वास नहीं
DAMODAR SWAROOP VIDROHI
बुधवार, 22 सितंबर 2010
होल्डिंग
पहले पहले मैं ने चहरे देखे ,
फिर उन्हें पढ़ा ,
फिर उन्हें समझा ,
फिर उनके बारे मैं जाना ,
या तो श्रधा की ,
या कुछ नहीं
सबकी आप के बारे मैं
येही तो सोच है.
सब सोच रहे हैं,
की ज़िन्दगी
एक बाधा -दौड़ है ,
आप गिरे ,
चलो लगा ---
एक खम्बा और गिरा ,
बाधा-दौड़ का .
उम्र बीतती है ,
खम्बे गिरते हैं
कुछ खम्बे ,
फिर कोई उठाकर
दुबारा सड़क पर लगा दे गा .
दिशा-निर्देश के होल्डिंग्स की तरह ,
बगैर ये जाने की आप
कब , कहाँ और क्यों
कैसे-कैसे गिरे .
ARVIND MISHRA
रविवार, 12 सितंबर 2010
क्रिशनाधार मिस्र.
गंध गूँज
सुधियों के सतरंगी इन्द्रधनुष ,
गीतों के बहुरंगी सप्त -कलश ।
मन के गगन में बनाए,
उर के सदन में सजाय तुमने ।
विस्मरति ने छीने ये रंग कई बार ,
मौसम ने किये तीव्र व्यंग कई बार ,
बनकर तब ज्योत्स्ना की रूप किरण ,
धर कर नव किसलय से अरुण चरण ।
भावों के द्वार जगमगाए ,
रागों के गुलमोहर उगाये तुमने ।
हर दिवस बसंत ,हर निष् सुगंध्हार ,
दोनों मिल करैं पुष्प के प्रबल प्रहार ,
दिवसों को देंबासंती चितवन ,,
रातों को गंधों के नंदन वन ।
नींदों के द्रव्य सब चुराय ,
लोरी के गीत गुन्ग्ने तुमने।
..............................क्रिशनाधार मिस्र.
सुधियों के सतरंगी इन्द्रधनुष ,
गीतों के बहुरंगी सप्त -कलश ।
मन के गगन में बनाए,
उर के सदन में सजाय तुमने ।
विस्मरति ने छीने ये रंग कई बार ,
मौसम ने किये तीव्र व्यंग कई बार ,
बनकर तब ज्योत्स्ना की रूप किरण ,
धर कर नव किसलय से अरुण चरण ।
भावों के द्वार जगमगाए ,
रागों के गुलमोहर उगाये तुमने ।
हर दिवस बसंत ,हर निष् सुगंध्हार ,
दोनों मिल करैं पुष्प के प्रबल प्रहार ,
दिवसों को देंबासंती चितवन ,,
रातों को गंधों के नंदन वन ।
नींदों के द्रव्य सब चुराय ,
लोरी के गीत गुन्ग्ने तुमने।
..............................क्रिशनाधार मिस्र.
DAMODAR SWAROOP VIDROHI
मैं कैसे क़दम उठाऊं , संकेत ज़रा सा दे दो.
मैं चलूँ तुम्हारे पीछे ,कुछ भेद ज़रा सा दे दो .
थक गया अभी तक चलकर ,हैं चरण हमारे हारे .
पहुचना चाहते अब हैं ,अपने प्रियतम के द्वारे .
" कसक"
मैं चलूँ तुम्हारे पीछे ,कुछ भेद ज़रा सा दे दो .
थक गया अभी तक चलकर ,हैं चरण हमारे हारे .
पहुचना चाहते अब हैं ,अपने प्रियतम के द्वारे .
" कसक"
गुरुवार, 2 सितंबर 2010
AKHTAR SHAHJAHANPURI
मुझे जिंदगी का पता दे गया ,वो हाथों मैं बुझता दिया दे गया .
कोई अक्स जिसमें उभरता न था ,वो उस आइने को जिला दे गया.
मरी खाक तो इतनी नाम भी न थी ,मगर वो तो पैकर नया दे गया
परिंदा फिजा मैं जो गुम हो गया ,मेरी फ़िक्र को रास्ता दे गया .
मैं अब खून का किस पे दावा करूँ ,की जब वो मुझे खून-बहा दे गया .
ज़मीं पर बुलंदी से आना तेरा ,तेरी अजमतों का पता दे गया.
मेरे दिल पे "अख्तर''न दस्तक हुई,सदा देने वाला सदा दे गया.
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