इस जनपद का हिंदी साहित्य मैं भी योगदान रहा है . यह केवल शहीद नगरी ही नहीं है. हमारा यह प्रयत्न हो गा की जनपद शाहजहांपुर के इस योगदान को उजागर करैं.
शनिवार, 10 जुलाई 2010
AKHTAR SHAHJAHANPURI
जसे फ़िक्र हो कुछ नया कर चले,
रिवायत से दामन बचाकर चले.
हमारे लिए क्या किसी ने किया ?
किसी के लिए हम भी क्या कर चले .
उसी के क़दम मंजिलें चूम लें,
जो रास्ते के पत्थर हटा कर चले
क़यामत की है तीरगी उसतरफ ,
चले जो भी शमाएँ जलाकर चले .
वही सुर्खरू होगा इस जंग मैं ,
जो नेजे पर सर को सजाकर चले.
खुले कोई दरवाज़ा या बंद हो ,
सदा करने वाले सदा कर चले.
ये बज्मे-तखयुल है "अख्तर' यहाँ ,
कहो फ़िक्र से सर उठाकर चले.
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