गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

हम और तुम






'क' से कबूतर 'ख' से खरगोश,
'ग' से गधा या कहीं-कहीं  गणेश ,
इन्हीं शब्दों की ही जोड़-तोड़ मैं कटी है 
सारी उम्र
इन्हीं शाब्दिक गठ-बन्धनों  मैं बंधे हैं,
रिश्ते और सम्बन्ध .
कभी-कभी एक छोटी कंकड़ी नुकीली सी 
उठा कर  खुरच  दिया था --
तुम्हारा नाम ,
पेड़ के मुलायम तने पर "अर्जुन; के 
अब उम्र की ढलान पर 
ह्रदय रोग की पीड़ा में,
डाक्टर की सलाह से जब 
"अर्जुन'  के वृछ  की छाल 
उतारने गया 
तो वही नाम , वही समबन्ध 
जो उकेरे  थे  पेड़ पर 
अट्टहास कर उठे 
मेरी रेत-सी फैली नापुन्सुकता पर .


                    अरविन्द मिश्र

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

मत पकड़ो किस्मत की बैसाखियाँ


मत पकड़ो किस्मत की बैसाखियाँ 
मत पकड़ो !
अन्यथा तुम्हारा श्रम , अपाहिज हो जाएगा ,
और तुम ,किस्मत पर आश्रित हो जाओगे,
तब तुम्हारे पेट की आग ,
तुम्हारी किस्मत बुझा सके गी क्या ?
बीमार माँ-बाप  की दावा दिला सके गी क्या ?
बच्चों के कपडे ,फीस दिला सके गी क्या ?
नहीं,हरगिज़  नहीं ! क्यों नहीं लेते  अपनी टांगों का सहारा 
कमज़ोर सही अपाहिज नहीं हैं .
तभी अपनी आवश्यकतायें पूरी कर सको गे.
अन्यथा 
सदैव किस्मत के अत्यचार सहोगे.


                          अचल लक्छमन विशवास 

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

,कफ़न

हर धर्म में 
शव पर डाला जाने वाला कपडा ,कफ़न होता है 
हम
हिन्दू ,मुसलमान , सिख, इसाई  बना सकते है 
पूजा के तरीके बदल सकते हैं ,
धर्मध्वज  अलग-अलग  रंग के बना सकते हैं,
धर्म के नाम पर हिंसा , आगज़नी, अत्याचार करा सकते हैं,
लेकिन कफ़न का रंग नहीं बदल सकते ,
कफ़न का नाम नहीं बदल सकते,
कफ़न हर मानव को अपने गले लगाता है,
इसलिए सभी धर्मों से सम्मान पाता है,
क्योंकि कफ़न मानव धर्म  मानता है 
मानव सेवा ही जानता है.
                                                    अचल लक्छ्मन विशवास