स्व० दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' जी की ये पंक्तियाँ उनकी पुस्तक "त्रिधारा" (प्रकाशक:मेधा बुक्स,दिल्ली)में पृष्ठ संख्या १५ पर पूरी "गज़ल" के रूप में इस प्रकार दी गयी हैं:
कुछ लोग जी रहे हैं यूँ आचरण बदलकर, शैतान पुज रहे हैं ज्यों आवरण बदलकर!
कोई न अन्यथा ले मेरा सहज समर्पण, रख दूँगा एक पल में वातावरण बदलकर!
ऐसे भी हैं यहाँ कवि लिखकर के एक कविता, वर्षों सुना रहे हैं कुछ उद्धरण बदलकर!
अब इनको क्या कहूँ मैं जनता 'जनार्दन' है, संध्या उठा के लाये नव जागरण बदलकर!
गीतों के पद ढले हैं संगीत के सुरों में, पाणिनि का श्राद्ध होता है व्याकरण बदलकर!
भगवान मौत देना सम्मान वह न देना, स्वीकारना पड़े जो अन्त:करण बदलकर!
स्व० दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' जी की ये पंक्तियाँ उनकी पुस्तक "त्रिधारा" (प्रकाशक:मेधा बुक्स,दिल्ली)में पृष्ठ
जवाब देंहटाएंसंख्या १५ पर पूरी "गज़ल" के रूप में इस प्रकार दी गयी हैं:
कुछ लोग जी रहे हैं यूँ आचरण बदलकर,
शैतान पुज रहे हैं ज्यों आवरण बदलकर!
कोई न अन्यथा ले मेरा सहज समर्पण,
रख दूँगा एक पल में वातावरण बदलकर!
ऐसे भी हैं यहाँ कवि लिखकर के एक कविता,
वर्षों सुना रहे हैं कुछ उद्धरण बदलकर!
अब इनको क्या कहूँ मैं जनता 'जनार्दन' है,
संध्या उठा के लाये नव जागरण बदलकर!
गीतों के पद ढले हैं संगीत के सुरों में,
पाणिनि का श्राद्ध होता है व्याकरण बदलकर!
भगवान मौत देना सम्मान वह न देना,
स्वीकारना पड़े जो अन्त:करण बदलकर!