तुमने भरदी एक भिकारी के हाथों कि खाली झोली ,
व्यंग से आहात कानों को दे दी तुमने मीठी बोली .
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तुमको क्या दे पाऊंगा में मुझको जीवन देने वाले ,
तपती हुई उम्र को आकर सहसा सावन देने वाले ,
तप्त रेत पर भीन जी गई ऐसा शीतल वर्षण पाया ,
निर्धन मन धनवान हो गया ऐसा दिव्य समपर्ण पाया .
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कहते हैं लोग प्रतिभा परिचय स्वयम बनेगी ,
दम ही निकल न जाये पहिचान होते-होते .
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