रविवार, 4 जुलाई 2010


अगर तुम आ न जाते कुसुमई मुस्कान से सजाकर
धरा पर यह बिछी सारी बहारें मूक रह जातीं .

घटा आती पहन जल बिन्दुओं की पायलें ,गाती ,
ठुमक उठतीं शिलाएँ झूम आकाशी मेर्दंगों पर ,
बिज्लिओं की हंसी से मेदिनी आकाश मिल जाते ,
हवाएँ गीत लिख जातीं नदी के सुप्त अंगों पर

......क्रिश्नाधार मिश्रा

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