रविवार, 26 फ़रवरी 2012

Gloucoma

काला -मोतिअबिंद   कितना छोटा सा नाम  है  कितना कम बदनाम  है  मगर  जिसको  होता है वो ही जानता है की वो कैसे  तिल तिल कर के चलता है और उसको हर समय जीवन का अंत दीखता है क्योंकि हर मार्ग बंद दीखता है.


एक ज़रा आहट न हुई ख़त्म सफ़र होने तक,
ऐ उम्र रवां तू कितने दबे  पाऊँ चली.




वैसे  तो  इलाज  की  बहुत  सी   दुकानें  हैं   मगर  सब ही  पैसा  कमाने के  सिर्फ  बहाने  हैं   मरीज़  से 
किसी   को  कोई  दिलचस्पी नहीं है..