रविवार, 11 जुलाई 2010

ARVIND MISRA

आँसू


बहते हुए 
आंसुओं की 
गालों पर
बनती लकीर सूखने दो ,
आँख का सारा खारापन 
अपने गालों पर जमने दो .
जानते हो ?
समुद्र का खारा पानी 
उन मछलिओन  के 
आंसुओं का ही तो है ,
जिन्हें बड़ी मछली निगल लती है.
और वो , जब जब नमक बनकर 
तुम्हारे पेट से आँख तक 
और आँख से गालों पर 
लकीर छोड़ता है , तो 
न जाने क्यों  मुझे लगता है .....
पूरा का पूरा समुद्र 
तुम्हरी आँखों मे है ,
जिसमे बहुत कुछ डूबा हुआ है ,
परन्तु उस डूबे हुए से ,
तुम्हारा परिचय  नहीं है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें