शनिवार, 20 नवंबर 2010

अरविन्द मिश्रा

घोंसला

तिनके
दरख्तों के सूखे पत्ते
धागे,फूस,बाल,
और न जाने क्या-क्या,
चुन-चुन कर
मैं
अब घोंसला नहीं बनाऊंगा .
जान लिया मैं ने ,
लोग बनाते हैं घोंसले
अपनी सन्तति के लिए ,
जिनमें अधिकाँश का चरित्र
उस बन्दर की तरह होता है
जो तोड़ देता है
घोंसला,
सीख देने पर

......................................................अरविन्द मिश्रा

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

AJAY GUPTA

मन होता

पता नहीं क्यों हम नितांत रह गए अकेले,
मन होता है हमको भी खो देते मेले .
हमको आज नहीं ,कल दिखता
या कल दिखता .
बहुत थके हम ढोते-ढोते
अंतर्मुखता .
योवन ने कब ली अंगडाई जान न पाया ,
याद नहीं कब बचपन में गुब्बारे खेले .
कठिन काम है
ज़िम्मेदारी का शव ढोना
सरल नहीं है
एक व्यवस्था का बुत होना .
चाहा पुरवा या पछुवा के साथ उडूं मैं
किन्तु फ्रेम मैं कास जाने के दंशन झेले

रविवार, 14 नवंबर 2010

AJAY GUPTA

समाधान  खोजें


साथ-साथ उड़ सकें जहां ,
वोह आसमान खोजें .
सब मिलकर रह सकें जहां ,
ऐसा मकान खोजें.

मौसम के आतंकवाद से ,
सहमी किरन परी.
भावुकता की गौरय्या पर ,
जमकर बर्फ गिरी .
शवांस सहज चल सके  बंधू 
वोह तापमान खोजें .