शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

रूपशूलिता

रूपशूलिता
बहुत बार चाहा , में शूलों का दर्द कहूं 
किन्तु एक रूप उतर आता है गीतों में.


जब भी में आया हूँ फूलों के मधुबन में ,
शूलों से भी  मैंने रूककर  बातें की हैं .,
फूलों ने अगर दिए मकरंदित स्वप्न मधुर ,
शूलों ने भी  मुझको दुःख की रातें दी हैं.


बहुत बार चाहा दुःख सहकर भी मौन रहूँ ,
वरवास एक  रूप गुनगुनाता है गीतों में,


मेरे मन पर यदि है जादू मुस्कानों का ,
आँसू की भाषा भी जानी पहचानी है ,
एक अगर राधा है ब्रज के मनमोहन की ,
दूजी तो घायल यह मीरा देवानी है.


बहुत बार चाहा है  आँसू के साथ बहूँ ,
किन्तु एक रूप  मुस्कराता है गीतों में.




                                                     क्रिश्नाधार मिश्र 

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011


विदूषक     अरविन्द  मिश्र 

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गबहाई  अरविन्द  मिश्र 

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कुछ तो है
ऐ खुदा दे चंद आंसू,याद में उसकी बहा लूं
मेरी आंखों के समंदर, होंठ जिसके पी चुके हैं।

कांप उठा फ़िर से दरिया, सर से लेकर पांव तक,
लग रहा आदम बेटी प्यार में डूबी यहीं है।

ओह नन्ही चिड़िया
जव बहुमंगिला ईमारत के पीछे से
लाल लाल आँखे तरेरता सूर्य
मेरी खिड़की पर झांकता है
तुम पंजो से सलाखे पकड़ कर लटक जाती हो ओह नन्ही चिड़िया /
वल्कानी में लगा फूल जब मुस्कान बिखेर  देते है
वहति बयार में
फूल आगे पीछे ऐसे झूमते है
मनो मस्जिद में वच्चे कर रहे हो हफिज़ा
तुम बच्चो के स्वर में गाने लगती हो ओह नन्ही चिड़िया /
में बिस्तेर पर बैठा और तुम रोशाव्दन पर
तुमसे आँखे मिलते ही मैं बंद कर लेता हूँ अपनी आँखे
इस आशा से कि आँखे पर तुम
रखोगी  अपना हाँथ / पंजा और
पूछोगी  कौन ?
मैं कहूँगा मेरी विटिया ओह नन्ही चिड़िया


अरविन्द मिश्र को मिला शिवांशु स्म्रति सम्मान

अरविन्द मिश्र  को मिला शिवांशु  स्म्रति सम्मान  


शाहजहांपुर : चौथा शिवांशु  स्म्रति सम्मान   नगर के चर्चित व्यंगकार को दिया गया . भुवनेश्वर प्रसाद शोध  संस्थान की ओर से गाँधी पुस्तकालय में  आयोजित इस समारोह  में ओमकार सिंह राठोर  की कृति " भारत के वीर बालक बालिकाएँ " का विमोचन भी किया गया .
मुख्य  अतिथि स्वतंत्रता  संग्राम सेनानी  बसंत लाल खन्ना  व विशिस्ट अतिथि  राजकुमार सांख्यधर  तथा राम प्रसाद शुक्ल  ने नगर के वरिष्ट गीतकार  ओम प्रकाश अडिग  की अध्यछ्ता में सम्मान दिया . जिसमें उन्हें ११ सौ रूपये  का चेक ,स्मृति चिन्ह , प्रशस्ति  पत्र  दिए गए . इस अवसर पर श्री खन्ना ने कहा की शिवांशु जी का व्यक्तित्व बेलौस था.  जो केवल मंच पर खडे होकर  ही आधा काम  कर देते थे .
इस मौके पर अख्तर शाहजहांपुरी ,दिनेश रस्तोगी , डा. अवनीश  मिश्र  , केशव चंदर मिश्र , सतीश चंदर शर्मा , श्रीकांत ,ज़रीफ़ मलिक , व सुरेश चंदर शर्मा ने भी सम्भोदित किया . इस सम्मान समारोह में विवेक शर्मा , अरुण शर्मा , शरद शर्मा  व शुभम शर्मा का योगदान रहा 

बुधवार, 19 जनवरी 2011

मन्त्र=आवेश

मन्त्र=आवेश 
अपरिचित छड़\
अपरिचित  वातावरण 
क्यों महक उठता है 
समेट लेता है मुझे 
संम्पूर्ण ,


तुम्हारे स्पर्श से 
मन्त्र पूरित 
किसी वस्तु को 
देखकर ?


किसी प्रितिध्वनी पर 
बज उठता है 
ले बनकर
ह्रदय  का संतूर
तुम्हारी किसी भी 
वस्तु को छूकर ?


क्यों महक उठती है
अंगराग सी मेरी 
दुर्गंधित पार्थिविता 
तुम्हारी ऊष्मा के 
एक अंश को पाकर ?
बताओ तो क्यों ?


                  क्रिश्नाधार  मिश्र 

शनिवार, 15 जनवरी 2011

परमाणु  बम से जूझती  हुई दुनिया  के लिए " अडिग'  का  सन्देश


मौत का बढ़ता हुआ सामान देखकर ,
दुनिया को बचाने की कुछ फ़िक्र कीजिये .


ज्ञान से  विज्ञान से तू  ये सवाल कर ,
दुनिया नहीं रही तो क्या करेंगे हम.


उम्मीद बच न पाएगी अटम की मार से ,
फिर भी दुआ करो की दुनिया बची रहे.


                                    ओमप्रकाश  " अडिग"

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

बुद्धि सागर वर्मा

श्री शिव वर्मा  जी के  दूसरे भाई 


  श्री बुद्धि सागर वर्मा  की भी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं कुछ का विवरण निम्नलिखित है.


१. श्री स्वामी दर्शनानंद जी सैस्वती  कृत 
    नवीन व  प्राचीन  वेदान्त 
    उर्दू का भाषा अनुवाद 


श्रीयुत  बुद्धिसागर  वर्मा { आर्य }
रिअसत थम्र्वान  , हरदोई 
प्रथम बार १९२१ मूल्य  १/-


२. Essay Writing by Shri B.S Verma  Ex- Vice Principal
 ARHS School Shahjahanpur 
 31.7.57   Budhi Sagar Verma  Sr. English Teacher 


३. काम कला और स्वास्थ्य  { युवक -युवतीओं  के लिए }


लेखक बुद्धिसागर वर्मा
प्रगति प्रकाशन आगरा -३    
१९६७  मूल्य रु. ४/- 





गुरुवार, 13 जनवरी 2011

डॉ . जनेश्वर  वर्मा     { एम् .ए.  हिंदी , भाषा विज्ञानं }  पी. एच . डी .          द्वारा लिखित पुस्तकें 


१ मार्क्सवाद के मूल सिद्धांत .
प्रकाशक   समाजवादी साहित्य सदन , ७ जाप्लिन  मार्ट , नजीराबाद   लखनऊ


प्रथम बार मार्च १९७०  मूल्य  चार रु.


2. प्रेमचंद एक  मार्क्सवादी मूल्याँकन
प्रकाशक    ग्रंथम  , रामबाग  कानपूर-२०८०१२ 
१९८६  मूल्य  रु. १२५/- 


महान क्रांतिकारी शिव वर्मा

अमर शहीद  भागर सिंह के साथी ,
महान क्रांतिकारी   शिव वर्मा .
लेखक  रमेश  विद्रोही 
मूल्य  रु . २/-


स्वर्गीय  शिव वर्मा  स्वयं  भी एक लेखक  थे 
उनके  द्वारा लिखित  कुछ पुस्तकें.


१. संस्मर्तियाँ { क्रांतिकारी  शहीदों के संस्म्रनात्म्क  रेखा चित्र }
लेखक       शिव  वर्मा 
समाजवादी साहित्य सदन  कानपूर 
११/२६४ सूटर गंज    कानपूर
१९६९  मूल्य   रु. ८/-


२. मौत के इंतज़ार में
लेखक   शिव वर्मा
शहीद स्मारक प्रकाशन  लखनऊ -२२६००२
शहीद नगर , पुराना किला 
१९९६  मूल्य  रु. ३०/= 
3. शहीद  भगत सिंह  की  चुनी हुई  कृतियाँ 




सम्पादक     शिव  वर्मा 


  प्रथम संस्करण  सितम्बर  ,१९८७


4.. मार्क्सवाद परिचयमाला
समाजवादी साहित्य सदन कानपूर 
११/२६४ सूटर गंज  कानपूर ,
१९७२ मूल्य  ४५ पैसे 

पगले कुछ तो धीर धर

तुम तो रेंगे ,सदा समय की ,खींची हुई लकीर पर ,
में तो आया ,नागफनी के , सारे जंगल चीर कर .


तुम ने ही तो बड़े प्यार से ,
सींची क्यारी शूल की,
तुमने ही तो  क़दम-क़दम पर ,
रोपी पोध बबूल की ,
चिंतित क्यों हो , जबकि बेहया ,
उग आया उद्यान में ,
सोच-समझकर , जाँ-बूझकर ,
तुमने ही तो भूल की .


तुम तो फंसते रहे ,मुश्किलें  खुद अपनी तामीर कर ,
में तो आया ,नागफनी के , सारे जंगल चीर कर .


बाल-अरुण को दोपहरी से ,
पहले भाई शाम क्यों,
उदय्लित सागर की जपती,
लहर-लहर हरी नाम क्यों ?
कोई तो अंगडाई ले , जागे ,
जलकर दे रौशनी ,
सभी तीलियाँ ,दियासलाई में ,
करती विश्राम क्यों ?


धरकर चरण मचलना सीखो , कातिल की शमशीर पर ,
में तो आया ,नागफनी के , सारे जंगल चीर कर .


तुम चाहो तो तापी हथेली  से ,
सहला दो शीत को,
मीत गीत से ही कुरेद दो ,
ज्वालामई  अतीत को ,
फौलादी संकल्पों से चाहो तो ,
रेत  बना डालो ,
नरता की छाती पर उठती हुई ,
अन्य की भीत को,


लेकिन तुम तो फूल चढ़ाते , किस्मत की तस्वीर पर,
में तो आया ,नागफनी के , सारे जंगल चीर कर 


तुमने समझा शलभ बाबरे !
बर्रयों की भीर को ,
गंगाजल समझा तुमने ,
गंदे नाले के नीर को ,
किसी तरह से भी गुज़ार लो ,
जीवन के अवशेष दिन ,
जान रहा , अनुमान रहा ,
तेरे अंतस की पीर को ,


फिर से हंस चुगे गा मोती ,पगले कुछ तो धीर धर ,
में तो आया ,नागफनी के , सारे जंगल चीर कर 


                                    अजय गुप्त 

बुधवार, 12 जनवरी 2011

वोह नहीं पुस्तक मिली


कौन से आधार थे,
जिन पर टिके थे हम.
दर्द की उन साफ़ आँखों में,
नहीं कोई.
एक दुनिया राह में यूँ ही -
यहाँ खोई,
कौन सी बाज़ार थी ,
जिसमें बिके हम थे ..
रुक गई है बात चलते ,
स्वार्थ पर भाई ,
एक सूरत बिन बताय ,
क्यों यहाँ आई ..
वोह नहीं निकले की जैसे,
कुछ दिखे हम थे .
याद कुछ भी रह न पाया ,
नाम या चेहरा ,
क्या हुआ जो धर लिया है ,
फूल का सहरा ..
वोह नहीं पुस्तक मिली ,
जिसमें लिखे हम थे.

ओमप्रकाश " अडिग'

शनिवार, 8 जनवरी 2011

कुंवारे गीत

कुंवारे  गीत 


           अडिग 
यौवन  द्वारा , यौवन के लिए , यौवन के गीत

स्नेह पोच्केट बुक्स , शाहजहांपुर    वर्ष १९७८   मूल्य   ३/-


प्रीत  कंवारी है तुम्हारी ,
गीत कुंवारे हैं हमारे  ,
                                     इस तरह मिलते रहेंगे ,
                                     हम सदा संध्या सकारे,
                                     सुख जन्म की वीथिका में ,
                                     या कभी आँगन द्वारे .
नींद कुंवारी है तुम्हारी ,
स्वप्न कुंवारे हैं हमारे .
                                      हम कभी तो व्यस्तता में ,
                                      स्रष्टि का विशवास हारे .
                                      औ कभी हम मुघ्दता से,
                                      छल रहे श्रींगार धारे .
कामना कुवारी तुम्हारी ,
भाव कुंवारे  हमारे.
                                      डूबकर भी झांकते  क्यों ?
                                      हैं नदी में सुख सितारे ?
                                      क्यों छिपा पाता नहीं मन ,
                                      प्यार के अविरल उजारे  ?
देह सरि कुवारी तुम्हारी  
तीर कुवारे  हमारे 


                                                               अडिग