शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

2013

पिछली  पोस्ट  के करीब  एक  वर्ष  के बाद  आया हूँ  , ग्लूकोमा  के होते  हुए  अभी  जिंदगी
अपनी राह पर चल रही है  जिंदगी  हर जगह चलती है  यहाँ  भी  और और वहाँ  भी  . आज जब  यूरोप , चीन , भारत  ठिठुर रहा  है तब वोह कहते हैं की  ऑस्ट्रेलिया  मैं  भीषण  गर्मी  है

है न ये जीवन  के  अलग अलग  रंग  और  आदमी  हर रंग मैं जीता है

शमा हर रंग मैं जलती है  सहर  होने तक,
आदमी  जीता  है  बस शाम होने तक

ज़िन्दगी   की  शाम  जो  हर  शाम की  तरह  ज़रूर  आती  है
पिछले  वर्ष  माताश्री  एकदम से  चली  गईं  बहुत अजीब  लगता है
अब उनसे बात  करने को दिल करता  है  अब  लगता  है  और  शिद्दत  से अहसास  होता है  की हमको  तो बहुत  बातें   करनी  थीं  जब  वोह पास  थीं  तो  ये  गुमान   था की  वोह  हैं  तो  ये  सोचा भी  नहीं  था  की एकदम  से  वोह  सोते  सोते  सुबह  के  वक़्त   जो  सहर  का  वक़्त  होता  है  उस  वक़्त   हम  सबको
छोड़ कर  चल  दें  गी ...........................................................