सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

OM PRAKASH 'ADIG'

शताब्दी  के  पुत्रों  !   सुनो  !


मुझ से पूर्व की पीढ़ी ने , बबूल के पेड़ बोये थे ,
और अब ,जबकि हम जन्म चुके हैं ,
उनपर  कांटे  आ रहे हैं ,
ऐसा मुझे मालूम है ,की पुरानी कहावतें गलत हो रही हैं ,
अब बोता कोई है ,काटकर ढोता कोई है .
पूरी  शताब्दी ,जिसमें मैं ने जन्म लिया ,
बबूल के काँटों से छलनी है
रक्त  से लाल है ,
कई महायुधों और  युधों  के बीच ,
जब मुझे अवकाश मिला .
मैं ने सोचा :

मुझे क्यों जन्माया गया ?
बबूल का जंगल क्यों उगाया  गया ?
उत्तर दे भी तो कौन  ?
सभी  मेरे समवयस्क  हैं .
इसी शताब्दी के  हैं .
काँटों से  बिंधे हैं .
अत :  इस शताब्दी के पुत्रों .
जब तुम्हें युद्ध से समय मिले
और दर्द कुछ मालूम हो ,
तो बबूल के जंगल साफ़  करना ,
और वहाँ आम के  वृछ  लगाना.

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