शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

अरविन्द मिश्र

कला ---- अनुभूति से ,
अभिव्यक्ति  का  सफ़र है .
होगा  हमें क्या ?
अंतर केवल इतना है कि
मिटटी नदी मैं मिलती  है  और
मैं कहता हूँ  कि
नदी मिटटी मैं मिलती है .
होगा
तुम्हें क्या ?


न अनुभूति कि कोई अभिव्यक्ति हो ,
न अभिव्यक्ति  कोई अनुभूति ले सके .
हो गा हमें तुम्हें क्या ?


                         

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