सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

SAROJ KUMAR MISHRA

छोड़ कर पतवार नावे चल पड़ी है किस दिशा में चाँद भी मद होश होकर डूबता जाता निशा में बंद शतदल पर किरन , की माधुरी ज्यो गीत गाये हर भ्रमर का दिल जला है आज प्रिय का ख़त मिला है व्योम वैभव रूप का सब लिख दिया है शेष चुम्बन हेतु रीता हाशिया है और कोमल पुष्प रति का, रूप की आभा बिछाये दर्प का दर्पण गला है आज प्रिय का ख़त मिला है लिख दिए बीते सपन मनुहार लिखते दूरियों में प्रीति का विस्तार लिखते फिर वही छल पाश से, आँचल बचाये एक लम्बा सिलसिला है आज प्रिय का ख़त मिला है -------------------------------------------सरोज मिश्र ----

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