रविवार, 13 अक्तूबर 2013

SAROJ KUMAR MISHRA

मेरे समस्त मित्रो को समर्पित मेरा नया गीत 

मै खुद को चौसर पर हारू ,
और किसी की जीत बनो तुम
ऐसा तो तय नही हुआ था "

धीरज धरते सदा किनारे 
नदियों ने तोडी मर्यादाए 
सुख निर्मोही ढीट बड़ा है 
दुःख तो आये बिना बुलाये 
खो देना ही पा लेना हे 
मंत्र समझकर रहे पूजते 
हमने तब सयंम को साधा 
जब पाने के अबसर आये 

में बन जाऊ नियम पुराना 
नई नबेली रीत बनो तुम
ऐसा तो तय नही हुआ था "

मैंने सावन को देखा हे 
कितने रूप कलश छलकाते 
कुछ बसंत देखे हे मैंने 
महज फूल पर प्यार लुटाते 
रूपनगर के इन भवरो की 
चाहत में बस आकर्षण था
नागफनी को मिली सजाबट 
कमल कीच में है सकुचाते 

मै बन जाऊ वैराग्य विजन का 
मधुर अधर का गीत बनो तुम 
ऐसा तो तय नही हुआ था "
---------------------------------"सरोज मिश्र

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