बुधवार, 19 जनवरी 2011

मन्त्र=आवेश

मन्त्र=आवेश 
अपरिचित छड़\
अपरिचित  वातावरण 
क्यों महक उठता है 
समेट लेता है मुझे 
संम्पूर्ण ,


तुम्हारे स्पर्श से 
मन्त्र पूरित 
किसी वस्तु को 
देखकर ?


किसी प्रितिध्वनी पर 
बज उठता है 
ले बनकर
ह्रदय  का संतूर
तुम्हारी किसी भी 
वस्तु को छूकर ?


क्यों महक उठती है
अंगराग सी मेरी 
दुर्गंधित पार्थिविता 
तुम्हारी ऊष्मा के 
एक अंश को पाकर ?
बताओ तो क्यों ?


                  क्रिश्नाधार  मिश्र 

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