बुधवार, 12 जनवरी 2011

वोह नहीं पुस्तक मिली


कौन से आधार थे,
जिन पर टिके थे हम.
दर्द की उन साफ़ आँखों में,
नहीं कोई.
एक दुनिया राह में यूँ ही -
यहाँ खोई,
कौन सी बाज़ार थी ,
जिसमें बिके हम थे ..
रुक गई है बात चलते ,
स्वार्थ पर भाई ,
एक सूरत बिन बताय ,
क्यों यहाँ आई ..
वोह नहीं निकले की जैसे,
कुछ दिखे हम थे .
याद कुछ भी रह न पाया ,
नाम या चेहरा ,
क्या हुआ जो धर लिया है ,
फूल का सहरा ..
वोह नहीं पुस्तक मिली ,
जिसमें लिखे हम थे.

ओमप्रकाश " अडिग'

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