सोमवार, 2 अगस्त 2010

ARVIND MISHRA

प्रतीछा

सुना है तुम आज भी ,
हमारी प्रतीछा मैं हो ,
मत आना हमारे सामने ,
जो तस्वीर हमने अपनी ,
पुतलिओं के शीशे के मध्य ,
पलकों के
लकदीलय फरमे मैं जड़ी है ,
निश्चीत ही है
अब तुम वैसी नहीं हो गी
सत्यता है की तुम में आया  परिवर्तन ,
अब तुम्हें खुद मालूम हो गा ,
फिर भी तुम्हारा ये चाहना ,
की अब ,
पुनः मेरी आँखों में
प्रतिबिम्ब तो वही बना रहे ,
और चाहना ,
वर्तमान की हो ,
हो न सके गा ,
अच्छा है की शेष
 हमारा  हो  या तुम्हरा
प्रतीछा में कटे.

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