गुरुवार, 12 अगस्त 2010

ATEET-ANSH BY KRISHNAADHAAR MISHRA

आज   फिर   उस  जैसा ,
हो गया है पावस का ये दिन ,
धरती के भीगे अंगों से उठकर ,
खिड़की के रास्ते ,
आने लगी है
यौवन  क़ी सुगंध १


जीवित हो उठे हैं 
 मेरे अन्दर वे पल 
जब मेरी शिराओं में ,
झनझनाकर बज उठती थी 
 सुन्दरता क़ी फुहरिल खिलखिलाहट 
चरों और बस गई थी 
चुपचाप अनकहे  रिश्तों क़ी एक बस्ती
मेरी प्रणय लीला के दर्शक 
कुटुम्बी बन गए थे 
जुड़ गया था उन सभी से
खून से अधिक एक गाढ़ा रिश्ता

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