युग पुरुष गाँधी ....दामोदर स्वरुप विद्रोही
गुलामी में घुटन की बढ़ गई जब हर तरफ आंधी ,
उबलती क्रांति भी जिसने समय के साथ बाँधी ,
अकेला था मगर परछइयां उसकी हजारों थीं ,
उसी का नाम मोहन था वही था युग पुरुष गाँधी.
तुम्हारी चेतना ने थे चरण चूमे जवानी में ,
नया अध्याय जोड़ा क्रांति की नूतन कहानी में ,
अहिंसा और चरखा बन गया सोपान आज़ादी ,
असंभव हो गया संभव लगा दी आग पानी में.
गाँधी शब्द दर्शन का नया अध्याय बन बैठा ,
मगर कुछ स्वार्थी मन का नया व्यवसाय बन बैठा ,
गाँधी विशव के बंधुत्व की अपनी कसौटी है ,
बिना अवतार ले , अवतार का पर्याय बन बैठा.
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