सोमवार, 6 दिसंबर 2010

श्री गाँधी पुस्तकालय

श्री   गाँधी पुस्तकालय , चौक  में ०४ .१२.२०१०  की साँय ०६ बजे कवी सम्मलेन अवम मुशाइरा  का गंगा-जमुनी कार्यक्रम सम्पन्न हुआ  कौमी एकता पखवाडे के सन्दर्भ में हुए इस  सुरिचिपूर्ण  कार्यक्रम में  वरिष्ट शायर श्री खालिद अल्वी ने अध्य्छ्ता  करते हुए श्रोताओं को सोचने  को मजबूर करते हुए कहा.




" गुरूरो  किब्र  वालों को कोई  भी  नाम मत देना ,
सुना है नींद में चलने की बीमारी भी होती है. "

इस अवसर पर उस्ताद शायर साग़र वारसी  ने तरन्नुम के साथ गुनगुनाया :


"अच्छी फसलें हो रही हैं फिर भी खुशहाली नहीं ,
एक दहकाँ कह रहा था ,खैरो-बरकत उड़  गई . "


कौमी एकता पर सटीक समाधान प्रस्तुत करते गाँधी पुस्तकालय  के सचिव , नवगीत के स्थापित  हस्ताछर  अजय गुप्त ने अपने चिरपरिचित  शैली  में कहा 

"खुशनुमा सुहाना मौसम है , हो चुकी तपिश कुछ तो कम है ,
बीते मौसम की बदअमनी,हम भी भूलें तुम भी भूलो .

वरिष्ठ गीतकार श्री बृजेश मिश्र  ने अपनी विशिष्ट शैली में प्रेम गीत गुनगुनाते हुए वाह वाही  बटोरी.

" साथी अभी मौन मत तोड़ो थोडा भ्रम  बना रहने दो ,
मालूम नहीं सुबह  कैसी हो ,ये तम अभी घना रहने दो. "


अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रसिद्ध शाएर  श्री अख्तर शाह्जाहंपुरी ने ये शेर कहा.
"अजब एक भीड़ सी है मेरे अदंर,
में तनहा हो के भी  तनहा नहीं हूँ,
में तरो-ताज़ा  दिखाई दूंगा "अख्तर"
किसी बीमार का चेहरा नहीं हूँ. "


स्थापित कविवर  डॉक्टर त्रिपाठी ने गीत की परिभाषा  करते हुए प्रशंसानिये प्रेम गीत पढ़ा 
"नहीं आवश्यक  की कुछ बोलें ,भावनाएँ जब सघन हो लें ,
करैं कितने ही बहाने पर ,नयन मन के भेद सब खोलें ,
प्राण का संगीत समझो ,मौन को ही गीत समझो . "

गोष्ठी कप गति प्रदान करते हुए  श्रोताओं की करतल ध्वनि  के मध्य गुनगुनाते  महबूब शाहजहांपुरी ने  कहा 

"गलत में था न ,हमसाया गलत था ,
किसी ने उसको समझाया गलत था ."

प्रसिद्ध शायर डा. ममनून ने अपनी बात कुछ इस तरह से कही ,श्रोता उनके तरन्नुम पर झूम उठे
"शोर कैसा है आज बस्ती में , क्या कोई दरमियान से उठता है ."
जब भी सहरा की सिम्त बढ़ता हूँ,एक बगूला वहाँ से उठता है "

मध्य रात्री तक चली काव्य गोष्टी में रसग्य श्रोताओं की उपस्तिथ में  सर्वश्री  ख्याल्गो लल्लन बाबू ,असगर यासिर , दीपक कंदर्प  ज्ञानेंद्र मोहन ज्ञान ,फहीम बिस्मिल , उमेश चन्द्र सिंह  ने काव्य  पाठ किया . गोष्ठी का सफल संचालन  व्यंगकार श्री अरविन्द मिश्र ने किया . आभार ज्ञापन पुस्तकालय के  संरछक  भू.पु.जोइंट कोमिशनोर श्री विजय कुमार ने किया 



" अपना घर है यहाँ मत डरो, जैसा जी चाहे वैसा करो ".......लल्लन बाबू

"खुदा जाने होंगे ख़त्म कब  लम्हे सफ़र वाले ,
बड़ी शिद्दत से याद आते हैं  मुझको अपने घर वाले."    .......असगर यासिर.


नई ज़मीन नए आसमान वाले हैं,

हमारे ख्वाब बहुत आनबान वाले हैं ,
हमारे खून में है  शामिल महक वफाओं की ,
की हम शहीदों के ही खानदान वाले हैं "................फहीम बिस्मिल

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