शनिवार, 25 दिसंबर 2010

तुम ज़रूर आओगे

तुम ज़रूर आओगे 


फूलों के चहरे
शबनम ने धोये हैं 
दूब खिलखिला कर  हंस रही है 
चिड्या
चहक रही है पेड़ों की शाखाओं पर 
नीम के पेड़ पर बैठा कौवा 
मेहमान आयेंगे बता रहा है
सुनहरी दिशाएँ मुस्करा  रही हैं
हवा सरसराती हुई 
अपना दुपट्टा लहराती है
मुझे विश्वास है 
आज तुम ज़रूर आओगे 
नई सुबह बनकर
सुखद  समाचार के साथ संभवत:


{ आक्रोश से  लेखक  अचल लछमण विशवास }

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