शनिवार, 20 नवंबर 2010

अरविन्द मिश्रा

घोंसला

तिनके
दरख्तों के सूखे पत्ते
धागे,फूस,बाल,
और न जाने क्या-क्या,
चुन-चुन कर
मैं
अब घोंसला नहीं बनाऊंगा .
जान लिया मैं ने ,
लोग बनाते हैं घोंसले
अपनी सन्तति के लिए ,
जिनमें अधिकाँश का चरित्र
उस बन्दर की तरह होता है
जो तोड़ देता है
घोंसला,
सीख देने पर

......................................................अरविन्द मिश्रा

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