इन्हीं का हाथ है मुझ को बुरा बनाने में
तेरी निगाह करम हम पे कुछ ज़्यादा है
ज़माने तू ही बता क्या तेरा इरादा है
कब की मरहूम हुई ज़िंदा दिली पर हम ने,
हंस के अकसर दिले ज़िंदा का भ्रम रखा है
बाहर से तो पहले की तरह अब हूँ सालिम,
लेकिन मेरे अंदर से कोई टूट रहा है
महसूस दूसरों को न होने दिया कभी,
दुख अपना झेलते हैं बहुत खुशदिली से हम ।
चेहरे पे आँसुओं ने लिखी हैं कहानियाँ
कआइना देखने का मुझे हौसला नहीं
आदमी तो मिले ज़िंदगी में बहुत
दिल तड़पता रहा आदमी के लिए ।
जो पराए हैं उन अपनों को बहुत याद किया
दिल ने टूटे हुए रिश्तों को बहुत याद किया
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