मन्त्र=आवेश
अपरिचित छड़\
अपरिचित वातावरण
क्यों महक उठता है
समेट लेता है मुझे
संम्पूर्ण ,
तुम्हारे स्पर्श से
मन्त्र पूरित
किसी वस्तु को
देखकर ?
किसी प्रितिध्वनी पर
बज उठता है
ले बनकर
ह्रदय का संतूर
तुम्हारी किसी भी
वस्तु को छूकर ?
क्यों महक उठती है
अंगराग सी मेरी
दुर्गंधित पार्थिविता
तुम्हारी ऊष्मा के
एक अंश को पाकर ?
बताओ तो क्यों ?
क्रिश्नाधार मिश्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें