शताब्दी के पुत्रों ! सुनो !
मुझ से पूर्व की पीढ़ी ने , बबूल के पेड़ बोये थे ,
और अब ,जबकि हम जन्म चुके हैं ,
उनपर कांटे आ रहे हैं ,
ऐसा मुझे मालूम है ,की पुरानी कहावतें गलत हो रही हैं ,
अब बोता कोई है ,काटकर ढोता कोई है .
पूरी शताब्दी ,जिसमें मैं ने जन्म लिया ,
बबूल के काँटों से छलनी है
रक्त से लाल है ,
कई महायुधों और युधों के बीच ,
जब मुझे अवकाश मिला .
मैं ने सोचा :
मुझे क्यों जन्माया गया ?
बबूल का जंगल क्यों उगाया गया ?
उत्तर दे भी तो कौन ?
सभी मेरे समवयस्क हैं .
इसी शताब्दी के हैं .
काँटों से बिंधे हैं .
अत : इस शताब्दी के पुत्रों .
जब तुम्हें युद्ध से समय मिले
और दर्द कुछ मालूम हो ,
तो बबूल के जंगल साफ़ करना ,
और वहाँ आम के वृछ लगाना.
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