गंध गूँज
सुधियों के सतरंगी इन्द्रधनुष ,
गीतों के बहुरंगी सप्त -कलश ।
मन के गगन में बनाए,
उर के सदन में सजाय तुमने ।
विस्मरति ने छीने ये रंग कई बार ,
मौसम ने किये तीव्र व्यंग कई बार ,
बनकर तब ज्योत्स्ना की रूप किरण ,
धर कर नव किसलय से अरुण चरण ।
भावों के द्वार जगमगाए ,
रागों के गुलमोहर उगाये तुमने ।
हर दिवस बसंत ,हर निष् सुगंध्हार ,
दोनों मिल करैं पुष्प के प्रबल प्रहार ,
दिवसों को देंबासंती चितवन ,,
रातों को गंधों के नंदन वन ।
नींदों के द्रव्य सब चुराय ,
लोरी के गीत गुन्ग्ने तुमने।
..............................क्रिशनाधार मिस्र.
सुन्दर भाव, धन्यवाद.
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