" गुरूरो किब्र वालों को कोई भी नाम मत देना ,
सुना है नींद में चलने की बीमारी भी होती है. "
इस अवसर पर उस्ताद शायर साग़र वारसी ने तरन्नुम के साथ गुनगुनाया :
"अच्छी फसलें हो रही हैं फिर भी खुशहाली नहीं ,
एक दहकाँ कह रहा था ,खैरो-बरकत उड़ गई . "
कौमी एकता पर सटीक समाधान प्रस्तुत करते गाँधी पुस्तकालय के सचिव , नवगीत के स्थापित हस्ताछर अजय गुप्त ने अपने चिरपरिचित शैली में कहा
"खुशनुमा सुहाना मौसम है , हो चुकी तपिश कुछ तो कम है ,
बीते मौसम की बदअमनी,हम भी भूलें तुम भी भूलो .
वरिष्ठ गीतकार श्री बृजेश मिश्र ने अपनी विशिष्ट शैली में प्रेम गीत गुनगुनाते हुए वाह वाही बटोरी.
" साथी अभी मौन मत तोड़ो थोडा भ्रम बना रहने दो ,
मालूम नहीं सुबह कैसी हो ,ये तम अभी घना रहने दो. "
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रसिद्ध शाएर श्री अख्तर शाह्जाहंपुरी ने ये शेर कहा.
"अजब एक भीड़ सी है मेरे अदंर,
में तनहा हो के भी तनहा नहीं हूँ,
में तरो-ताज़ा दिखाई दूंगा "अख्तर"
किसी बीमार का चेहरा नहीं हूँ. "
स्थापित कविवर डॉक्टर त्रिपाठी ने गीत की परिभाषा करते हुए प्रशंसानिये प्रेम गीत पढ़ा
"नहीं आवश्यक की कुछ बोलें ,भावनाएँ जब सघन हो लें ,
करैं कितने ही बहाने पर ,नयन मन के भेद सब खोलें ,
प्राण का संगीत समझो ,मौन को ही गीत समझो . "
गोष्ठी कप गति प्रदान करते हुए श्रोताओं की करतल ध्वनि के मध्य गुनगुनाते महबूब शाहजहांपुरी ने कहा
"गलत में था न ,हमसाया गलत था ,
किसी ने उसको समझाया गलत था ."प्रसिद्ध शायर डा. ममनून ने अपनी बात कुछ इस तरह से कही ,श्रोता उनके तरन्नुम पर झूम उठे
"शोर कैसा है आज बस्ती में , क्या कोई दरमियान से उठता है ."
जब भी सहरा की सिम्त बढ़ता हूँ,एक बगूला वहाँ से उठता है "
मध्य रात्री तक चली काव्य गोष्टी में रसग्य श्रोताओं की उपस्तिथ में सर्वश्री ख्याल्गो लल्लन बाबू ,असगर यासिर , दीपक कंदर्प ज्ञानेंद्र मोहन ज्ञान ,फहीम बिस्मिल , उमेश चन्द्र सिंह ने काव्य पाठ किया . गोष्ठी का सफल संचालन व्यंगकार श्री अरविन्द मिश्र ने किया . आभार ज्ञापन पुस्तकालय के संरछक भू.पु.जोइंट कोमिशनोर श्री विजय कुमार ने किया
" अपना घर है यहाँ मत डरो, जैसा जी चाहे वैसा करो ".......लल्लन बाबू
"खुदा जाने होंगे ख़त्म कब लम्हे सफ़र वाले ,
बड़ी शिद्दत से याद आते हैं मुझको अपने घर वाले." .......असगर यासिर.
नई ज़मीन नए आसमान वाले हैं,
हमारे ख्वाब बहुत आनबान वाले हैं ,
हमारे खून में है शामिल महक वफाओं की ,
की हम शहीदों के ही खानदान वाले हैं "................फहीम बिस्मिल
हमारे खून में है शामिल महक वफाओं की ,
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