अभी तो देखने में जवान थे और उत्साह नव-जवानों का था और एक दिन सुबह उठकर एख्बार देखा तो ये दुखद समाचार भी पढ़ा की वोह नहीं रहे , हम को ये मालूम है की अब ऐसी ख़बरों में अधिकतर ऐसे ही लोगों का नाम होगा जिनको हम जानते हैं मगर अचल जी से तो सिर्फ तीन मुलाक़ात हो सकीं वोह भी जौहरी साहेब की महरबानी से.
ऐसे लोग ही याद किये जाते हैं क्या बात थी ? अपना वोह एक अलग छाप छोडते थे मगर अब तो दूरी बहुत बढ़ गई है ये कैसा सफ़र है हम साथ साथ चलते हैं एक ही गाडी है मगर किसके स्टेशन कब आएगा कोई नहीं जानता
ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी कितनी बेवफा है